खरतर बिरूद धारक आचार्य जिनेश्वरसूरि कृत,मोक्ष के मुल उपाय सम्यकदर्शन के शम, संवेग आदि पाच लिंगो यानी लक्षणों पर 101 प्राकृत गाथाऔं में रचित अनुठे ग्रंथ पर आठ भागों में शोध प्रबंध।आचार्य जिनेश्वरसूरि के पाट पर संवेगरंगशालाकार जिनचंद्र सूरि जिनके पाट पर नवांगी वृर्तीकार अभयदेवसूरि इस प्रकार खरतरगच्छ पाट परंपरा आगे चली। प्रस्तुत भाग चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् खंड का सार है। उसमें शम, संवेग, निर्वेद और अनुकंपा के विस्तृत विवेचन के साथ आस्तिक्य लिंग मे नवतत्वों कि सिद्धि की गई है। पंचलिंगी प्रकरण का संपुर्ण आगमिक सार इस खंड में समाहित है।