कविराज शोभन मुनिराज जितने श्रृत साधना से शोभित हैं, उतने ही संयम से सुशोभित भी हैं । खरतर बिरुद धारक आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि के चरणो की समुपासना करके वे न केवल सुविहीत साधुचर्या के अभिन्न अंग बने अपितु काल के भाल पर पावन प्रज्ञा के हस्ताक्षर भी अंकित किये। श्री शोभन मुनि विरचित "जिनचतुर्विंशतिका" साहित्य आदित्य की वह स्वर्णिम किरण है, जो हजार वर्षों से प्रभु भक्तों को सर्मपण का प्रकाश बांट रही हैं।
Language title : श्री शोभन जिनचतुर्विंशतिका- प्रथम विभाग